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लेखनी कहानी -08-Jul-2022 यक्ष प्रश्न 1

आषाढ का महीना 

आषाढ़ का महीना अपने अंतिम दिन गिन रहा था । अब कुछ दिनों का ही मेहमान था वह । जिस तरह जब किसी व्यक्ति के "अंतिम दिन" आते हैं तो उससे मिलने नाते रिश्तेदार , अड़ोसी पड़ोसी , यार दोस्त सभी आते हैं । इसी प्रकार "आषाढ़ माह" से मिलने सभी लोग आये । 
एक ने कहा " अरे आषाढ़ जी । आपने अपने जीवन में कुछ भी नेक काम नहीं किया है । कम से कम मरते समय तो कुछ ऐसा कर जाओ जिससे तुम्हारा जीवन सफल हो जाए । इस पूरे महीने में तुमने एक बार भी पानी नहीं बरसाया । धरती कितनी व्याकुल हो रही है । पेड़ पौधे भी सूखकर कांटा बन गए हैं । जीव जंतु प्यास के मारे बेहाल हैं । सारा जगत , वनस्पति , जीव जंतु , इंसान , खेत खलिहान , नदी नाले , पोखर बावड़ी , झील तालाब सब के सब बरसात के बिना बुरी तरह से तड़प रहे हैं । इसलिए अपने अंतिम दिनों में तो कुछ पानी गिरा दो तो कम से कम  इन सबकी सांसें तो चलती रहें" ? 

बहुत देर से एक "छुटकी" चुपचाप बैठी थी । कहने लगी "आपने पानी नहीं बरसाया इसलिए मैं इस साल ना तो बरसात में भीग पाई और ना ही अपनी कागज की नाव ही चला पाई । और तो और पैरों से पानी उछाल उछाल कर अपने साथियों को गंदा भी नहीं कर पाई । बरसात के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है । प्लीज़ अंकल , जाते जाते बरसात तो कर जाइए ना । लोग कहते भी हैं ना कि अगर कोई नेक काम नहीं किया तो यह जीवन सफल नहीं होगा । इसलिए जाते जाते अपना जीवन सफल करते जाइए ना,  अंकल" । 

आषाढ़ महीने को बात समझ में आ गई । उसने इन्द्र से प्रार्थना की कि हे प्रभु क्या बरसात का सारा "ठेका" आजकल आपने केवल "सावन और भादों" को ही दे दिया है ? पहले तो यह हम चारों महीने "आषाढ़ , सावन , भादों और आसोज या क्वार महीने" में बराबर बंटा था । लगता है कि सावन और भादों ने भारी कमीशन खिलाकर सारा ठेका अपने नाम करा लिया है । यह कोई अच्छी बात नहीं है स्वामी । अब सब लोग हमको गालियां निकालते हैं । अगर आषाढ़ में बरसात नहीं करोगे तो लोग "चौमासे" की श्रेणी में से हमको बाहर कर देंगे फिर हम धोबी के गधे की तरह "ना घर के रहेंगे और ना ही घाट के" । ऐसी स्थिति में आप ही कुछ कर सकते हैं भगवन । जनता पानी के बिना त्राहि त्राहि कर रही है । वनस्पति दम तोड़ रही है और जीव जंतु भी बहुत परेशान हैं । इसलिए मुझे इतना पानी दे दो कि मैं अपना जीवन सार्थक कर जाऊं" । 

इंद्र को आषाढ़ महीने की बातें पसंद आ गई और उसने आषाढ़ महीने के घर के सारे बर्तन भर दिए और कहा "हे आषाढ़ , मैंने तुम्हारी बात मान ली है और तुम्हारे समस्त बर्तन भर दिए हैं पानी से । जाओ और खूब बरसात करो । इन बर्तनों को खाली कर दो तो मैं और भर दूंगा । जाओ , जल्दी जाओ और सब जीव जंतु , पेड़ पौधे , इंसान सबको अच्छी तरह से नहला दो, सबकी प्यास बुझा दो" । 

बस फिर क्या था । आषाढ़ महीने ने फिर इतना प्यार उड़ेला कि सारी धरती बरसात की बूंदों से भीग गई । सारे झरने चल पड़े । सूखी नदी जवान होकर बहने लगी । सारे तालाब , कुंए भर गये । सब पेड़ पौधे हरे भरे हो गए । सब जीव जंतु नई जिंदगी पा गये । और इंसान ? उसके तो कहने ही क्या ? किसान हल लेकर निकल पड़ा । मजदूर अपनी गेंती फावड़ी लेकर चल पड़ा । व्यापारी की सांस भी बरसात से ही चलती है । अब वह भी चलने लगी । सभी लोग मस्त मगन होकर "बारिश" में भीग रहे थे और "रेन डांस" का आनंद ले रहे थे । छुटकी भी अपनी छोटी सी नाव लेकर आ गई और "छई छप छई छपाक छई" करके पैरों से पानी के छींटें उड़ाने लगी । सारा नज़ारा बहुत दर्शनीय था । अब धरती भी हरी भरी चादर ओढ़ कर बहुत ही रमणीक लगने लगेगी । पिकनिक के लिए लोग अपने अपने घरों से निकलने लगे । कोई गरमागरम "भुट्टे" का आनंद ले रहा है तो किसी के घर में मियां बीवी में झगड़ा हो रहा है । झगड़े का कारण वही शाश्वत है । पति कहता है कि आखिर इतने दिन बाद बरसात आई है इसलिए "पकोडों" की रस्म अदायगी तो होनी ही चाहिए । और पत्नी ? उसका कहना है कि उसका भी मन बरसात में भीगने का है । इसलिए पकौड़े कौन बनाए ? आजकल एक नारा बहुत बुलंद हो रहा है कि जब स्त्री और पुरुष बराबर हैं तो फिर पकौड़ों की जिम्मेदारी हरदम स्त्री की ही क्यों" ? 

पति महाशय के पास कोई विकल्प ही नहीं बचा । इसलिए वे चुपचाप किचन की ओर चल पड़े पकौड़े तलने के लिए । यही "मध्यम मार्ग" है । भगवान बुद्ध उस समय बताना भूल गए थे इसलिए सोचा कि आप लोगों को बता दूं । हो सकता है कि इससे कुछ घर टूटने से बच जाएं । आगे "हरि" इच्छा । 

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10 Comments

Milind salve

21-Jul-2022 12:33 AM

बहुत खूब

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Hari Shanker Goyal "Hari"

21-Jul-2022 11:53 AM

💐💐🙏🙏

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Shnaya

20-Jul-2022 09:38 PM

शानदार

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Hari Shanker Goyal "Hari"

21-Jul-2022 11:53 AM

💐💐🙏🙏

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Seema Priyadarshini sahay

20-Jul-2022 06:08 PM

बेहतरीन रचना

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Hari Shanker Goyal "Hari"

21-Jul-2022 11:53 AM

💐💐🙏🙏

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